हम करते मेहनत का काम,सुबह से हो जाती शाम
धूल-धूप को सहते हैं,फिर भी कुछ न कहते हैं
मेहनत से उगाते हैं अनाज,खाता है जो सर्व-समाज
फिर भी हालत ऐसी आज,पैसे-पैसे को मोहताज़
अन्न उगाना हमारा काम,फसलों का मिलता न दाम
अन्नदाता कहलाते हैं,फिर भी कुछ न पाते हैं
जीवन में घोर निराशा है,फिर भी एक ही आशा है
बंद होगा हमपर अन्याय,मिल जाएगा हमको न्याय
चर्चा होगी अब ये आम,कर्ज़ा मुक्ति पूरा दाम।।
एक ही नारा एक ही नाम,#कर्ज़ा_मुक्ति_पूरा_दाम।।
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