आओ प्यारे तुम्हें सुनाए दास्तां इक इंसान की,तुम क्या जानो क्या होती है पीड़ा एक किसान की।
जो अपने नन्हें कंधों पर खुद हल लेकर चलता है,आखिर क्यों उसकी आफत का ना कोई हल निकलता है।
जिसके दम से हरियाली है,आज वही बदहाल खड़ा,
उम्मीदों से सींचा जिसको,आज वही बर्बाद पड़ा।
बेबसी और लाचारी देखो,उस भोले इंसान की,
ऐसी हालत लगी पड़ी है धरती के भगवान की।।

खाद-बीज-बिजली से लेकर अन्न दान तक वो करते हैं,जब किसान की बारी आये हाथ में लेकर तय करते हैं
बात अगर सर्दी की आये तो किसान को इंसान नहीं समझा जाता है,
सब की ड्यूटी दिन में होती है प्यारे लेकिन किसान का नंबर रात में आता है।
फसल बेचकर फल व कपड़े जब वो अपने बच्चों को लाता है,
घर आकर अपनी पत्नी को सारी बात समझाता है।
इस बार फसल सस्ती बिक गई,इसलिए तुम्हें ना कुछ लाया।
किस्मत में शायद कम ही था,इसलिए ना कुछ भी बच पाया।
मन की कौन व्यथा को समझे,उस मासूम किसान की।
ऐसी हालत लगी पड़ी है धरती के भगवान की।।

इतना सूद चुकाया उसने,खुद की सुध वो भूल गया
देख फसल की हरियाली को,सीना गर्व से फूल गया
बिन मौसम बारिश आंधी ने,फसल उसकी बर्बाद करी
उम्मीदों का पुल भी टूटा,कर्ज किस्त की मार पड़ी
खौफनाक ये देखके मंजर,छाती मैं जैसे सूल गया
सावन के सुंदर मौसम में,फांसी लेकर वो झूल गया
अमवा की डाली पर देखो,टंगी लाश बलिदान की।
ऐसी हालत लगी पड़ी है,धरती के भगवान की।।

एक अरब 40 करोड़ की,भूख जो रोज मिटाता है
कह नहीं पाता दर्द किसी से,खुद भूखा सो जाता है
फिर सीने पर गोली खाता,सरकारी सम्मान की
फूटी किस्मत देखो प्यारे,उस सच्चे इंसान की
ऐंसी हालत लगी पड़ी है धरती के भगवान की।।

किसी को काले धन की चिंता,किसी को भ्रष्टाचार की
मगर लड़ाई कौन लड़ेगा,कृषकों के अधिकार की
सरेआम बाजार में इज्जत,लुट जाती खलियान की
लेकिन नहीं किसी को चिंता मरते हुए किसान की।
ऐसी हालत लगी पड़ी है धरती के भगवान की।।


उम्मीद करें हम किस से,उनको तो चिंता है मतदान की।
फसल भरे बाजार में बिकती,माटी मोल किसान की।
ऐसी हालत करी देश की,फांसी लगी किसान की।।
ऐसी हालत लगी पड़ी है धरती के भगवान की।।।।